फिक्र नहीं तुझको कोई-
फिक्र नहीं तुझको कोई-
आंसू तेरे लिए कोई बहाता है,
इक खुश है दुनिया में अपनी-
एक आँखों को अपनी जगाता है |
प्यार में ऐसा क्यों होता -
इक रोता देखने की खातिर,
इक बार भी सामने न आकर-
दूजा क्यों रुलाता है ?
खुश है मुझ बिन ये जानता हूँ-
फिर क्यों प्यार जताता है ?
फुर्सत मिले जो दुनिया से,
तब प्यार ज़रा सा दिखाता है |
वादा करके देर से आये-
फिर मुझपर ही चिल्लाता है,
अजब प्यार की गाथा है वो-
प्यार में बना विधाता है |
वो रूठे तो सौ जतन करूँ-
हर तरह से उसको मनाता हूँ,
मैं रूठूँ तो कहे मुझे,
जब ख़त्म हो गुस्सा तब कहना-
थोड़ा जरुरी बात सुनाता हूँ |
कभी-कभी लगता दिल को-
प्यार नहीं व्यापार है ये,
कोई फर्क नहीं पड़ता उसको-
रूठूँ या मानूं मैं उससे,
लाचार दिल क्या करे कहो-
व्यथा कहे अब किससे,
बस प्यार दिए जाऊं उसको-
कोई उम्मीद न रखूं मैं उससे |
अम्बरीष चन्द्र 'भारत'