Tuesday, October 4, 2022

दिल-ए-हाल (AMBRISH CHANDRA BHARAT)

दिल-ए-हाल सबका


मैं नज़र भरकर -
देखता हूँ तुम्हें,
नज़रों से अपनी-
तुझे कोई ऐतराज़ है क्या?

तू नज़रों में मेरी देखकर-
नज़र हटा लेती है,
सीने में कोई राज़ है क्या?

अच्छा है मत देख-
मेरी निगाहों के साग़र में,
है मुझे यकीन-
तू मेरी नज़रों को देखकर,
बहकता तो होगा |

जो न देखूँ तुझे-
तो बेचैनी बढ़ती है मेरी,
यही हाल यहाँ
हर किसी का,
किसी की खातिर-
होता तो होगा |




अम्बरीष चन्द्र 'भारत'

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