दिल-ए-हाल सबका
मैं नज़र भरकर -
देखता हूँ तुम्हें,
नज़रों से अपनी-
तुझे कोई ऐतराज़ है क्या?
तू नज़रों में मेरी देखकर-
नज़र हटा लेती है,
सीने में कोई राज़ है क्या?
अच्छा है मत देख-
मेरी निगाहों के साग़र में,
है मुझे यकीन-
तू मेरी नज़रों को देखकर,
बहकता तो होगा |
जो न देखूँ तुझे-
तो बेचैनी बढ़ती है मेरी,
यही हाल यहाँ
हर किसी का,
किसी की खातिर-
होता तो होगा |
अम्बरीष चन्द्र 'भारत'