तेरे पास जब भी बैठूँ
तेरे पास जब भी बैठूँ-
साँसे ये बढ़ जाती है,
तेरी ज़ुल्फ़ों की खुशबू वो प्यारी,
नैनों का नशा नशीला सा,
नश-नश में मेरे-
चढ़ जाती है |
न मुझको कोई होश हो-
देखकर तुझको मदहोश हों,
दिल को न हो-
दिल की खबर,
दुनिया से हो-
दिल बेखबर,
नज़रें निहारें तेरे नैना,
ज़िद पर यूँ अड़ जाती है,
ये साँस मेरी-
हर साँस में फिर,
तेरे इश्क में पड़ जाती है |
पास तेरे जब भी बैठूं-
मेरी साँसे क्यूँ बढ़ जाती है |
अम्बरीष चन्द्र 'भारत'