Sunday, August 21, 2022

खो गया है कुछ (AMBRISH CHANDRA BHARAT)

 खो गया है कुछ


खो गया है कुछ-

जो ढूंढता हूँ मैं,

आवारा था बचपन -

या अब

आवारा घूमता हूँ मैं?

खो गया है कुछ-

जो ढूंढता हूँ मैं |


बेफिक्र होकर जीते थे तब-

यारों का साथ था अपना,

बस, खेल थक कर-

खाकर सोते और देखते सपना,

अब कुछ नहीं है-

यार भी सब दूर रहते हैं,

फिर भी न जानूं -

घर के सब क्यों ,

आवारा कहते हैं?


बचपन तो था -

तबतक हमारा,

जबतक नौकरी की बला न थी,

बचपन गया-

जवानी ले डूबी,

इक नौकरी की मार ने-

इस बरस, अगले बरस,

अगले के अगले कितने बरस,

नौकरी देगी -

वादा किया सरकार ने|

निशिचर बने रातों जगे-

नौकरी के इंतज़ार में,

कितने कुंवारे -

प्यार खोये,

मामा बने बेकार में |


अब बिना ख्वाहिश के ही-

दर बदर झूमता हूँ मैं,

खो गया सब कुछ मेरा जो-

फिर वही ढूंढता हूँ मैं |


अम्बरीष चन्द्र  'भारत'



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