मैं अकेला हूँ फिर भी
मैं अकेला हूँ फिर भी-
तुम्हे महसूस साथ करता हूँ |
रात की बेबस तन्हाई में-
जब याद तुम्हारी आती है,
बस इक बार लग जाऊँ गले-
ख्वाहिश तन-मन में जग जाती है,
कदम सीढ़ियों से होकर-
वीरान छत पर ले चलते है,
जहाँ काली रात अब भी-
तन्हा हवा को छेड़ती हैं,
मुझे देखते ही वो हवा -
दौड़ आती हैं पास मेरे,
मैं भी बेक़रार -
बस बाहें फैला के उसे-
अपने ह्रदय से लगा लेता हूँ,
तुम्हें महसूस करता हूँ,
उस पल को कुछ देर ही सही-
थोड़ा जी लेता हूँ |
दो आंसू झलक आते हैं-
मगर हवा उन्हें चूम लेती है ,
मेरी तन्हाई की दास्ताँ-
वो भी समझती हैं,
लाती है दूर से वो तेरी खुशबू,
और मुझपर छिड़कती है,
ख़ुशी चेहरे पर आती है मेरे-
और वो झूम उठती है |
अद्भुत मिलन ये देखकर-
रब बरसात करता है,
है दूर तू फिर भी,
हवा में साथ रखता हैं |
हर इश्क़ करने वाले का -
ईश्वर भी ख्याल रखता है,
फिर भी..
तुमसे मिलने की चाहत-
बार-बार करता हूँ,
मैं अकेला हूँ फिर भी-
तुम्हें महसूस साथ करता हूँ |
अम्बरीष चन्द्र 'भारत'