स्वतंत्रता और गुलामी
स्वतंत्रता की शुभकामना-
देते सभी एक दूसरे को,
मैं भी कहता शुभ मंगल हो,
आज़ादी की वेला ये |
आज स्वतंत्रता की भावना में-
बहते सभी नागरिक है,
कल से क्या होगा फिर से-
वही गुलामी तन मन की?
देश आज़ाद हुआ लेकिन-
सोच वही गुलामों की,
कोई रोटी दे युहीं-
न काम की कोई बात करे,
सोच रहे राजा बन जाये-
और घर बैठे आराम करे |
हो सकता हो बंद हो मदिरा -
पर नेताओं की हर रात सजे-
आज़ाद देश तो कहते है,
पर गुलाम नशे से करते हैं|
हर कदम पर खुले मदिरालय हैं-
पर जल सेवा का नाम नहीं |
आज़ादी तो तब मानूं-
जब जनता स्वतः काम करे,
देश की सेवा भाव लिए-
विश्व में देश का नाम करे |
आलस्य, अकर्मण्य, द्वेष न हो-
न किसी पर अत्याचार रहे,
हृदय में देश की सांसे हों -
तन देश की खातिर तैयार रहे |
हृदय से शुभ मंगल है,
जन-जन ऐसे ही आज़ाद रहे|