खो गया है कुछ
खो गया है कुछ-
जो ढूंढता हूँ मैं,
आवारा था बचपन -
या अब
आवारा घूमता हूँ मैं?
खो गया है कुछ-
जो ढूंढता हूँ मैं |
बेफिक्र होकर जीते थे तब-
यारों का साथ था अपना,
बस, खेल थक कर-
खाकर सोते और देखते सपना,
अब कुछ नहीं है-
यार भी सब दूर रहते हैं,
फिर भी न जानूं -
घर के सब क्यों ,
आवारा कहते हैं?
बचपन तो था -
तबतक हमारा,
जबतक नौकरी की बला न थी,
बचपन गया-
जवानी ले डूबी,
इक नौकरी की मार ने-
इस बरस, अगले बरस,
अगले के अगले कितने बरस,
नौकरी देगी -
वादा किया सरकार ने|
निशिचर बने रातों जगे-
नौकरी के इंतज़ार में,
कितने कुंवारे -
प्यार खोये,
मामा बने बेकार में |
अब बिना ख्वाहिश के ही-
दर बदर झूमता हूँ मैं,
खो गया सब कुछ मेरा जो-
फिर वही ढूंढता हूँ मैं |
अम्बरीष चन्द्र 'भारत'
Wah wah wah
ReplyDeletethank you so much
DeleteNice
ReplyDeleteमेरी दिल से आशा है ,आप एक महान कवि की ओर अग्रसर हों।
ReplyDeleteaapka ashirvad hai.
DeleteCommendable 👌❤️
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeletethank u so much
DeleteCorrect bro
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