Wednesday, September 28, 2022

तेरी आँखों की चमक (AMAR BHARAT)

तेरी आँखों की चमक


तेरी आँखों की चमक को-
अँधियारे की इक आस लिखूँ,
तू मुस्कुराए-
तेरी हसीं मुस्कराहट को,
मैं अपनी ज़िंदगी और साँस लिखूँ |

तुझे देखकर-
देखने की ख्वाहिश हो और,
तू रूप का सागर है-
मैं खुद को सहरा की प्यास लिखूँ |

तेरी हसीं भीगी ज़ुल्फ़ें-
हाथों में लाल मेहँदी का रंग,
मुस्कराहट दिल की धड़कन बनी-
तुझको मैं बेहद खास लिखूँ |

मिले सारा ज़हान-
जीतने की शक्ति,
मेरी आत्मा में है तू,
तुझे खुद का आत्मविश्वास लिखूँ |

तेरी आँखों की चमक को-
अँधियारे की इक आस लिखूँ ,
तेरी हसीं मुस्कराहट को,
मैं अपनी ज़िंदगी और साँस लिखूँ |



                                                                      अम्बरीष चन्द्र 'भारत'

Monday, September 26, 2022

बस एक नज़र का खेल है (AMAR BHARAT)

बस एक नज़र का खेल है


बस एक नज़र का खेल है-
तू मुस्कुराकर देखे तो आबाद,
तु नज़रे फेर  ले  तो-
दिल बेचारा फेल है |

मैं तो आवारा हूँ-
राहों का बंजारा हूँ,
भागता तेरे पीछे-
तेरे प्यार का मारा हूँ |

लड़खड़ाता थक गया हूँ-
डूबता दुनिया के सागर में,
ढूंढता एक किनारा हूँ |

कभी सर्द से ठिठुरा तो-
कभी सूरज से तपता हूँ,
छाले पावं के फूटे तो,
तेरा नाम जपता हूँ  |

कभी इक नज़र देखे-
तु समझे मैं बेचारा हूँ,
तेरी नायाब नज़रों का मिले-
मुझे भी एक नज़र तोहफा,
उस प्यार भरी नज़र की खातिर-
फिरता आवारा हूँ,

बहुत रोया हूँ मैं-
तन्हाई में-
लगाकर गले कह दे मुझे,
मैं तेरा सहारा हूँ |

दुनिया का क्या-
दुनिया लगे,
जैसे कि निर्मम जेल है,
बस इक नज़र का खेल है |

तु मुस्कुराकर देखे तो आबाद-
तु नज़रे फेर ले तो,
दिल बेचारा  फेल है |



अम्बरीष चन्द्र 'भारत'

Thursday, September 22, 2022

WHY I AM NOT THAT PEN? (AMAR BHARAT)

WHY I AM NOT THAT PEN?


I FEEL JEALOUS WITH THAT PEN,
WHICH YOU TOUCH -
WITH YOUR BEAUTIFUL HAND.
WHY I AM NOT THAT PEN?



I FEEL JEALOUS WITH THAT PEN-
WHICH YOU PUT,
IN YOUR BEAUTIFUL HAIR,
WHY I AM NOT THAT PEN?



I FEEL JEALOUS WITH THAT PEN-
WHICH YOU TOUCH-
FROM YOUR BEAUTIFUL ROSY LIPS.
WHY I AM NOT THAT PEN?


I FEEL JEALOUS WITH THAT PEN-
WHEN YOU KISS THAT PEN,
WHY I AM NOT THAT LUCKY PEN?


I REALLY FEEL JEALOUS -
WHEN YOU PUT THAT PEN IN YOUR MOUTH.
WHY I AM NOT THAT PEN?





  अम्बरीष चन्द्र 'भारत'



Tuesday, September 20, 2022

अदाएं रखती हो-(AMAR BHARAT)

 अदाएं रखती हो


बातों में नशा रखती हो-
सुनकर बातें तेरी
दूर हो जाते है ग़म,
सुना है होठों पर तुम अपने-
हर ज़ख्म की दवा रखती हो |

सुकून मिले दिल को जिससे-
चेहरे पर मुस्कराहट की-
ऐसी चमक रखती हो,
दिल झूम उठे-
सुनकर आवाज़ तेरी,
सुना है बोली में अपनी-
सितार की झनक रखती हो |

जब भी मिलता हूँ-
नज़र तुमसे हटती नहीं,
जबकि मालूम है हमें -
नज़रों पर करदे जादू-टोना -
ऐसी नज़र रखती हो |

तेरी नज़रों में देखता हूँ-
की कुछ तो चाहत तुम भी रखती हो,
लड़खड़ाते हैं अल्फ़ाज़ तेरे-
मुझसे बातें करते हुए,
हो न हो दिल के किसी कोने में-
मेरी मोहब्बत तुम भी रखती हो |
                                                                 



अम्बरीष चन्द्र 'भारत'

Sunday, September 18, 2022

अधूरी चाहत (AMAR BHARAT)

अधूरी चाहत-


रात काली अमावस की थी-
और चेहरा तेरा चाँद सा,
इक लौ जलाई मैंने-
चमका तेरा चेहरा,
दिल में हुई हलचल-
वो सामने था ज़ुल्फ़ों का पहरा |

आंखे चमक रही थी-
जैसे कि सितारे हों ,
तुम मुस्कुराई तो दाँत दमके-
जैसे इक धागे में पिरोए-
श्वेत मोती सारे हों |

तेरे पास आ रहा थे मैं-
और तुम थोड़ा घबराई,
मेरे कदम वहीं रुक गए-
जो माथे पर तेरे -
पसीने कि बूँद आई,
तू घबरा गई-
ये सोचकर मैं रुक गया,
फिर तू ज़रा सम्भली,
मेरी तरफ कदम बढ़ाया,
कुछ हौंसला हुआ मुझमे-
और तेरी ओर मैं बढ़ आया |

बढे मेरे कदम जो तेरी ओर-
तुझे ख़ुशी तो हुई,
दिल ही दिल में खुश था मैं-
होठों पर मेरे हंसी तो थी,
आज तुम्हें छूकर मैं-
अहसास नया कुछ पाऊँगा,
ये सदियों की चाहत-
होगी पूरी,
अब पल न ये गवाऊंगा |

पर न जाने क्यों-
इस ख्याल के बाद,
कदम एक भी बढे नहीं-
जड़ सा मैं जमा रहा,
और काली किस्मत से काले बादल-
आसमा से हटे नहीं,
'कड़क उठी जो बिजली एक-
आँखे डर से खुली रही '

"आज फिर तुझको छू न पाया-
चाहत अधूरी बनी रही |"

                                                                अम्बरीष चन्द्र 'भारत'



Thursday, September 15, 2022

आसमां के सारे सितारे (AMAR BHARAT)

आसमां के सारे सितारे


आसमां के सारे सितारे-
चमक रहे वस्त्रों में तुम्हारे,
देखे हम ये चाँद-सितारे -
या तुम्हे देखकर होश संभाले?

आँखों में प्यार का सागर है-
अधरों में मय की  गागर है,
मय को पीकर सोचता हूँ-
करूँ खुद को मैं,
तेरे नैनों के हवाले,
फिर डूबा दे मुझको-
या पार लगा,
दिल और जां है सब-
क़दमों में तुम्हारे|
आसमां के लाखों तारे -
चमक रहे वस्त्रों में तुम्हारे |

मैं तुम्हें देखकर सांस भरूँ-
तन-मन में नया अहसास धरूँ,
तेरे मुखड़े की ख़ुशी-
है जान मेरी,
अब रब भी है-
मैं विश्वास करूँ|

तुम हसीं चाँद सी-
दूर भी हो,
नैन चकोर मेरे-
तुम्हे निहारे,
आसमां के लाखों तारे -
चमक रहे वस्त्रों में तुम्हारे |


अम्बरीष चन्द्र 'भारत' 



Monday, September 12, 2022

कभी- कभी (AMAR BHARAT)

कभी- कभी 

कभी- कभी तुम्हें-
आसमां में देख लेता हूँ,
इंद्रधनुष के रंग की-
साड़ी में |

लाल गोल सूरज की-
बिंदी लगाए,
हाथों में -
चाँद की कलाओं का कंगन,
उँगलियों में स्वर्णिम -
बादल की मुंदरी,
गले में चमकते-
सितारों का हार,
कहीं कुछ -
श्याम रंग के बादल,
आँखों में काजल की तरह शोभित,
और क्या कहूं कि-
ये मस्त हवा का झोंका,
जैसे वो तेरी -
खिलखिलाती हंसी,
कभी-कभी वो कड़क-
और चमक बिजली की,
जैसे तेरा क्षण भर का गुस्सा,
और कुछ ही देर में-
मध्यम सी ,
प्यार की बारिश बनकर-
मुझपर गिर जाना,
कभी-कभी |

अम्बरीष चन्द्र  'भारत'





Saturday, September 10, 2022

किसका है? (AMAR BHARAT)

किसका है?


मेरे सीने में-
धड़कता है एक दिल,
किसका है?

मेरी नज़रों में हैं-
इंतज़ार रात-दिन,
ये इंतज़ार किसका हैं?

दिल में बुन रहा हूँ-
एक सपनों का संसार,
वो संसार किसका हैं?

ठोकर लगती है-
ख्वाब को हकीतकत करने में-
फिर भी प्यार से चलता हूँ-
ये प्यार किसका हैं?

मैं सोता हूँ -
पहले से ज्यादा,
हसीं ख्वाब में,
ज़रा सोचो तो-
वो हसीं ख्वाब,
किसका है?

मैं मुस्कुरा देता हूँ-
रोते-रोते ,
वो चेहरा देखकर,
मेरे चेहरे की ख़ुशी है-
वो चेहरा,
सोचो वो हसीं चेहरा-
किसका है?

ख़ुशियाँ पूछ कर पता-
उसके पास जाती है,
ग़म गलती से भी-
उसे देखता नहीं,
सोचो ऐसा हसीं अंदाज़-
किसका है,

जो मेरे दिल पर-
करती है राज और ,
रहती है राज़ बनकर,
मेरे दिल में तो है-
पर ज़ुबां पर न आये,
सोचो ज़रा वो राज़ -
किसका है |

मैं चुप रहता हूँ-
चमक देखो मेरे चेहरे की,
सब पूछते है मुझसे-
ये प्यार किसका है?

मैं खामोश निगाहों से-
खुश हूँ-
तुझे महसूस कर,
मैं क्यों बताऊँ?

वो दिल-
वो इंतज़ार,
वो पलकों में प्यार,
वो हर पल का साथ,
वो मेरे सीने का राज़,
वो हसीं अंदाज़,
और खुशियों का संसार,
वो सब उसका है,
जो मेरी नज़रों में आकर-
दिल में समाकर,
प्यार मुझसे करता है,
वो हसीं है इस कदर -
की मेरा दिल उसपर मरता है|
मेरा रोम-रोम -
सिर्फ उसका है,
ये मत पूछो ,
की मेरा सब कुछ-
किसका है?

अम्बरीष चन्द्र  'भारत'


Thursday, September 8, 2022

डेढ़ चाँद (AMAR BHARAT)


डेढ़ चाँद

कल रात डेढ़ चाँद मुझे-
छत पर नज़र आया था,
मैं देख रहा था-
आधे चाँद को छत पर ,
और पास मेरे-
पूरा चाँद आया था |
कल रात डेढ़ चाँद मुझे-
छत पर नज़र आया था |

आधे चाँद पर-
काले बादलों का साया था,
पूरे चाँद को-
काली ज़ुल्फ़ों ने सजाया था |

रहकर पास मेरे-
वो चाँद मुस्कुराया था,
बहुत देर तक हुई बातें उससे,
मेरे दिल को-
बेहद सुकून आया था |
कल रात डेढ़ चाँद मुझे-
छत पर नज़र आया था |

हुई सवेर-
मैं उठकर चला आया था-
रूठ बैठा मेरा चाँद मुझसे,
आने के पल-
उसे ह्रदय से जो न लगाया था |

बहुत ख़फ़ा है-
मेरा चाँद मुझसे,
उसके दिल को जो दुखाया था |
पर वो पल -
बेहद हसीं रब ने बनाया था,
कल रात डेढ़ चाँद मुझे-
छत पर नज़र आया था |

अम्बरीष चन्द्र  'भारत'



Monday, September 5, 2022

शिक्षक_ (AMAR BHARAT)

शिक्षक

मिटटी का कोई मोल नहीं-
पत्थर में कोई बोल नहीं,
आकार दे मिटटी को जो-
पत्थर को जो तराश दे,
ज्ञान से हमे नाम दे-
समाज में इक पहचान दे,
अज्ञान नष्ट करने वाले-
ऐसे गुरुजनों का कोई मोल नहीं,
बिन ज्ञान के हम भी थे-
मिटटी, पर मिटटी का कोई  मोल नहीं |

लाखों भी खर्च कर दे मगर-
बिन गुरू के ज्ञान मिलता नहीं,
सच्चा गुरू गर ज्ञान दे-
मन बाधाओं में हिलता नहीं |

कहते है वेद-
बिन गुरू के,
मिलते कहीं भगवान नहीं,
गुरू से मिला ज्ञान जिसको-
बना सदा महान वही |

ईश्वर से पहले-
स्थान जिनका ,
सर्वोपरि सम्मान है-
गुरू है माता-पिता के जैसे-
धरती पर वो ही भगवान है,
मिला गुरू सच्चा जिसको-
कदमो में रहा जहान है |

शिक्षक तिथि की हार्दिक शुभकामनाये |


अम्बरीष चन्द्र  'भारत'





Sunday, September 4, 2022

खुद को आंसुओं से भिगो लूँ (AMAR BHARAT)

खुद को आंसुओं से भिगो लूँ 

लग कर गले मैं तेरे-
खुद को आंसुओं से भिगो लूँ ,
बहुत भारी सा हो गया है-
मन मेरा,
पास बैठकर मैं तेरे-
थोड़ा रो लूँ,
थक चूका हूँ -
दुनिया से, हतास हूँ,
तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में सो लूँ,
डर लगता है-
ज़िंदगी की हकीकत से,
तेरे चाँद से चेहरे को देखकर-
नैनों की गहराई में खो लूँ ,
लगकर गले तेरे-
जी भर के रो लूँ |

गर न साथ दे-
यार तू,
तो रब की पनाह में हो लूँ,
मिलना है उसी से आखिर में,
तो क्यों न अभी ही -
रुखसत ज़िंदगी से हो लूँ,
लग कर गले मैं तेरे-
खुद को आंसुओं से भिगो लूँ |

अम्बरीष चन्द्र  'भारत'

Friday, September 2, 2022

आज बारिश कुछ यूँ हुई (AMBRISH CHANDRA BHARAT)

आज बारिश कुछ यूँ हुई 


आज बारिश कुछ यूँ हुई -
की दिल को याद- 
तेरी आ ही गयी ,
काश के सिर्फ एक झलक-
 ही मिल जाये तेरी,
दिल में रब से -
फ़रियाद आ ही गयी |

मैं बैठा इक कप चाय लिए-
खोया था तेरे ख्यालों में,
इक भीगी हुयी बला आयी -
भीगे हुए बालों में,

इक नज़र पड़ी उसपर-
नज़रों ने उससे नज़र हटा ली,
मैं देखने लगा बारिश-
घनघोर गर्जन घटा ने ली|

मैं याद करने लगा वो पल-
जब साथ मेरे तुम कभी थी,
इक चाय का प्याला-
जूठा तुम्हारा,
मिठास की न कोई कमी थी |

छत पर जब हम साथ जाते-
बारिश के झीने झरने में नहाते,
भीगे हुए तेरे वो केशू -
उँगलियों से जिनको,
 हम थे सुलझाते |

गालों पर तेरे -
बारिश के मोती,
उँगलियों से थे हम उठाते-
लाल अधर पर -
ठहरे मोती, 
लबों से तेरे चूम जाते |
बारिश जवाँ -
और हुस्न तेरा,
कैसे सनम खुद को बचाते?

तेरी निगाहों का -
मुझपर जादू ,
बारिश का मौसम -
रहे कैसे काबू?
दिल की हालत-
क्या हम बताते?
मेरे कातिल -
हम मर ही जाते |

आज तन्हा बारिश में बैठे-
उन पलों में हम है जाते,
याद कर लेते है उनको-
सांसों को जो मेरी चलाते |

तेरी यादें लिए-
दूर बैठे बारिश से हम,
दिल नहीं कहता है मुझसे-
चल कि तन्हा हम नहाते |
तेरी नज़रे पड़े तो -
बिन बारिश के भी,
हम भीग जाते |

अम्बरीष चन्द्र  'भारत'




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