कहो तो जीना छोड़ दूँ?
गुस्सा हो मुझसे?
तो कहो जीना छोड़ दूँ?
तुम्हारी हंसी का अमृत पीता था-
कहो तो वो भी पीना छोड़ दूँ?
मेरे दर्द पर आवाज़ तुम्हारी-
मरहम सी है,
इस मरहम को बना कर धागा -
अपने ज़ख्मो को सीता था,
न हो तुम्हे पसंद तो-
ज़ख्मों को सीना छोड़ दूँ ?
अगर मानती हो अपना-
चाहती हो ज़रा सा भी,
तो अपना बना लो-
किसी तरह,
सिर्फ ख्वाब तुम्हारे ही देखता हूँ-
हर हाल में तुमको ही चाहता हूँ,
तुम्हे अपनाने की ख्वाहिश करता हूँ-
न चाहत रही हो-
मुझे अपना बनाने की,
तो कहो-
ख्वाब देखना छोड़ दूँ?
न बना सको अपना तो -
जीना छोड़ दूँ?
:अम्बरीष चन्द्र 'भारत'
👌👌❤️
ReplyDeleteJinko dekhkar jeete hain unke liye hi jeene chhod de
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