इस पल की दरारों में
इस पल की दरारों में-
नीरसता सी भरती जा रही है,
तुझसे मेरी दूरी मुझे-
बेचैन करती जा रही है |
अब दिल मुझसे-
कुछ यूँ कह रहा है,
तेरी जुदाई का गम,
रोम-रोम सह रहा है |
की तू न जाने -
कौन से वक़्त का इंतज़ार कर रही है?
तुझे ह्रदय से लगाने को -
रूह मेरी तरस रही है |
सांसे खुद से लड़ने लगीं हैं,
तड़प तुझसे मिलने की बढ़ने लगी है,
आसरा मौत का मिल रहा है जैसे,
ज़िंदगी अब मुझसे बिछड़ने लगी है |
क्या हस्र है जान का जॉ मेरी,
कैसे सुनाऊ?
तुम समझोगी कैसे?
चाँद से चेहरे को देखने की तलब-
हर पल मेरी बढ़ती जा रही है,
क्यों सांसो को ये बेचैन करती जा रही है?
इस पल की दरारों में -
नीरसता सी भरती जा रही है |
तुझसे मेरी दूरी मुझे-
बेचैन करती जा रही है |